Divorce and Alimony in 2025 – India’s Changing Legal Landscape

भारत में तलाक और भरण-पोषण – 2025 की स्थिति (Divorce and Maintenance in India – Status 2025)

2025 में भारत में तलाक और भरण-पोषण से जुड़े कानूनों में काफी बदलाव आ रहे हैं। अब कोर्ट सिर्फ वित्तीय मदद पर नहीं, बल्कि कई दूसरी बातों पर भी ध्यान दे रहा है।

सोशल मीडिया अब इन मामलों में बड़ा रोल निभा रहा है। लोग जो पोस्ट करते हैं, वो तलाक के केस में सबूत के रूप में इस्तेमाल हो रही है। इससे कुछ नए कानूनी मुद्दे भी सामने आ रहे हैं। इसके साथ ही कानून में सुधार की कोशिशें भी हो रही हैं ताकि प्रक्रिया आसान और बराबरी वाली हो।

महिलाओं के अधिकारों को मज़बूत किया जा रहा है, खासकर प्रॉपर्टी में हिस्सेदारी को लेकर। साथ ही कोर्ट और कानून अब डिजिटल दौर के मुताबिक खुद को ढालने की कोशिश कर रहे हैं।

2025 में भारत में तलाक और भरण-पोषण से जुड़े अहम मुद्दे (Important issues related to divorce and maintenance in India in 2025):

1. भरण-पोषण कैसे तय होता है:

कोर्ट ये तय करते वक्त शादी के दौरान की जीवनशैली, दोनों पति-पत्नी की कमाई की क्षमता और शादी कितने साल चली – इन सब बातों का ध्यान रखते हैं। कोशिश ये रहती है कि जिस व्यक्ति को आर्थिक मदद चाहिए, वो अकेला और बेसहारा न रह जाए। लेकिन साथ ही ये भी देखा जाता है कि कहीं कोई व्यक्ति जानबूझकर पैसा लेने के लिए दावा तो नहीं कर रहा।

2. महिलाओं के संपत्ति अधिकार:

अब कुछ राज्यों ने ऐसा कदम उठाया है कि शादी में जो प्रॉपर्टी बनी है, उसका बंटवारा बराबरी से हो। इससे महिला को उसका हक मिलने में मदद मिल रही है।

3. सोशल मीडिया का असर:

अब तलाक के केस में सोशल मीडिया से निकली चीजें जैसे धोखा, मानसिक उत्पीड़न या पैसों का दुरुपयोग – ये सबूत की तरह इस्तेमाल हो रही हैं। लेकिन इसके साथ ही निजता का उल्लंघन और गलत इस्तेमाल का खतरा भी है।
वहीं दूसरी तरफ, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से वर्चुअल सलाह और विवाद सुलझाने में भी मदद मिल रही है।

4. कानूनी रुझान:

कानून आयोग मानता है कि अब केसों का तरीका बदल रहा है, इसलिए कानून में बदलाव ज़रूरी है। अब प्रोसेस को तेज़, आसान और सबके लिए उपलब्ध बनाने की दिशा में काम हो रहा है।

5. कानूनी ढांचा:

हिंदू मैरिज एक्ट 1955 और घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम 2005 – ये आज भी बहुत जरूरी कानून हैं। लेकिन अब इनका इस्तेमाल और मतलब समय के साथ बदल रहा है।

6. बच्चों की कस्टडी:

जब भी बच्चे की देखभाल की बात आती है, तो कोर्ट बच्चे की भलाई को सबसे ज़रूरी मानता है। जैसे – उसकी उम्र, लड़का या लड़की है, माता-पिता में से कौन बेहतर देखभाल कर सकता है, ये सब देखा जाता है।

7. डिजिटल सबूत:

अब कोर्ट में व्हाट्सएप चैट, फेसबुक पोस्ट जैसी डिजिटल चीजें भी सबूत के रूप में मानी जा रही हैं।

8. ऑनलाइन विवाद समाधान:

अब कई जोड़े आपस में सहमति से तलाक की प्रक्रिया ऑनलाइन पूरी कर रहे हैं, जिससे कोर्ट में लंबे समय तक केस चलाने की ज़रूरत नहीं पड़ती।

9. टेक्नोलॉजी का असर:

एक तरफ टेक्नोलॉजी से अत्याचार और धोखे का सबूत इकठ्ठा करना आसान हो गया है, तो दूसरी तरफ इससे निजता भंग होने और गलत इस्तेमाल का खतरा भी बढ़ा है।

10. लैंगिक समानता:

अब कोर्ट और कानून इस ओर ध्यान दे रहे हैं कि महिला और पुरुष – दोनों को बराबर का इंसाफ मिले। खासतौर पर आर्थिक मामलों में जैसे संपत्ति का बंटवारा या भरण-पोषण।

भारत में भरण-पोषण के नियम

भरण-पोषण जिसे हम मेंटेनेंस या स्पाउस सपोर्ट भी कहते हैं, वो आर्थिक मदद होती है जो तलाक के बाद एक जीवनसाथी दूसरे को देता है। इसका मकसद होता है कि जो जीवनसाथी आर्थिक रूप से कमजोर है, वो तलाक के बाद भी अपनी ज़िंदगी उसी स्तर पर जी सके।

मुंबई और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में ये कानून मुख्य रूप से हिंदू मैरिज एक्ट 1955, इंडियन डिवोर्स एक्ट 1869 और स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के तहत लागू होते हैं।

भारत में भरण-पोषण के प्रकार (Types of Alimony in India):

1. अस्थायी भरण-पोषण (Temporary Alimony):

तलाक की प्रक्रिया के दौरान आर्थिक रूप से कमजोर जीवनसाथी को मिलने वाली सहायता। इससे कोर्ट की प्रक्रिया और रोज़मर्रा के खर्चे उठाने में मदद मिलती है।

2. स्थायी भरण-पोषण (Permanent Alimony):

जब तलाक हो जाता है, तो कोर्ट की मंज़ूरी से एकमुश्त या मासिक किस्तों में दी जाने वाली रकम।

3. पुनर्वास भरण-पोषण (Rehabilitative Alimony):

ये कुछ समय के लिए दिया जाता है ताकि जीवनसाथी कोई कोर्स या ट्रेनिंग करके खुद कमा सके।

4. नाममात्र भरण-पोषण (Nominal Alimony):

जब जीवनसाथी को ज़्यादा पैसों की ज़रूरत नहीं होती, लेकिन कोर्ट ये मान्यता देता है कि उसने शादी में योगदान दिया।

Reference

अलग-अलग धर्मों में भरण-पोषण के नियम (Alimony Maintenance rules in different religions):

हिंदू कानून (Hindu Act):

हिंदू मैरिज एक्ट के तहत पति या पत्नी – दोनों को भरण-पोषण मिल सकता है।
अगर तलाक आपसी सहमति से हो रहा है, तो दोनों अपनी मर्ज़ी से तय कर सकते हैं कि कौन कितना देगा।
अगर विवाद हो तो कोर्ट फैसला करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में 8 बातों को ध्यान में रखने की बात कही है:

  • पति-पत्नी की सामाजिक और आर्थिक स्थिति
  • शादी के दौरान की जीवनशैली
  • पत्नी और बच्चों की ज़रूरतें
  • नौकरी और समाज में दोनों की स्थिति
  • परिवार के लिए किया गया त्याग
  • जिसके पास भरण-पोषण मांग रहा है उसकी संपत्ति
  • केस की लागत अगर पत्नी नौकरी नहीं करती
  • पति की इनकम और उसकी जिम्मेदारियां

हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम:

1.  पत्नी, नाबालिग बच्चे, माता-पिता और विधवा बहू को मेंटेनेंस का हक है।

2.  पत्नी अपने पति के साथ न रह रही हो, फिर भी अगर कारण सही हो (जैसे अत्याचार, छोड़ देना), तो उसे मेंटेनेंस मिलेगा।

3.  अगर विधवा के पास खुद की आमदनी नहीं है और वो पति की संपत्ति से भी मदद नहीं पा रही, तो ससुराल पक्ष से मांग सकती है।

4.  नाबालिग बच्चों को भी शादी तक मदद मिल सकती है।

मुस्लिम कानून (Muslim Act):

1.  महिला को तलाक के बाद इद्दत के समय में एक उचित रकम, मेहर और शादी से पहले या बाद में मिली प्रॉपर्टी का अधिकार होता है।

2.  अगर महिला दोबारा शादी नहीं करती और खुद को संभाल नहीं सकती, तो वक्फ बोर्ड से मदद मिल सकती है।

ईसाई कानून (Christianity Act):

1.  इंडियन डिवोर्स एक्ट के तहत कोर्ट ये देखता है कि पति की आमदनी क्या है, दोनों का व्यवहार कैसा रहा।

2.  अगर कोर्ट को लगता है कि केस सिर्फ परेशान करने के लिए किया गया है तो मेंटेनेंस नहीं मिलता।

पारसी कानून (Parsi Act):

  1. पारसी विवाह और तलाक अधिनियम में महिलाओं को भरण-पोषण का अधिकार मिलता है।

भरण-पोषण कैसे तय होता है? (Calculation of Alimony)

कोई एक फिक्स फॉर्मूला नहीं है। हर केस अलग होता है। कोर्ट इन बातों पर ध्यान देता है:

  • दोनों की कमाई और संपत्ति
  • दोनों का व्यवहार
  • टैक्स, लोन और बाकी खर्च
  • बच्चों की पढ़ाई और परवरिश का खर्च
  • पति की जिम्मेदारियां जैसे बूढ़े माता-पिता
  • सामाजिक स्थिति और जीवनशैली
  • उम्र और सेहत की स्थिति

भारत में भरण-पोषण के नए नियम क्या हैं? (What are the new rule of Alimony)

भरण-पोषण के लिए कोई तय गणना नहीं होती। कोर्ट ये देखता है कि दोनों की कमाई कितनी है, किसने कितना योगदान दिया, और कौन क्या कमा सकता है।

जैसा कि एक केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था – पति की कुल सैलरी का 25% देना उचित माना जा सकता है। लेकिन ये कोई पक्का नियम नहीं है।

पत्नी की शिक्षा, आमदनी और कमाने की क्षमता भी देखी जाती है।

एक केस का उदाहरण

हाल ही में भारतीय क्रिकेटर युजवेंद्र चहल और कोरियोग्राफर धनश्री वर्मा को तलाक मिला। कोर्ट के आदेश से चहल ने 4.75 करोड़ रुपये बतौर भरण-पोषण दिए।

निष्कर्ष (Conclusion)

भरण-पोषण का उद्देश्य होता है आर्थिक रूप से कमजोर जीवनसाथी की मदद करना। ये तभी मिलता है जब कोर्ट को लगता है कि वो व्यक्ति खुद अपना खर्च नहीं उठा सकता।

हर धर्म में इसके अलग नियम हैं, लेकिन सभी का मकसद यही है कि किसी का जीवन तलाक के बाद बर्बाद न हो।

❓ अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)

1. भारत में तलाक लेने का तरीका क्या है? (What is the divorce process in India?)

अगर पति-पत्नी दोनों तलाक के लिए तैयार हैं, तो म्युचुअल तलाक आसान होता है। कोर्ट में एक अर्जी देनी होती है और 6 महीने बाद तलाक मिल सकता है। अगर एक पक्ष तैयार नहीं है, तो फिर वजह बताकर केस करना पड़ता है – जैसे झगड़े, धोखा या मानसिक परेशानी।
source: Divorce Process in India
https://indiankanoon.org/doc/1626726/
(Indian Divorce Act, 1869 – Section 10)

2. तलाक के बाद भरण-पोषण किसे मिलता है? (Who gets alimony after divorce?)

जिसे कमाई नहीं है या जो शादी के बाद घर संभालता रहा हो, उसे भरण-पोषण मिल सकता है। ज़्यादातर मामलों में पत्नी को दिया जाता है। लेकिन अगर पति कमाता नहीं, तो वो भी मांग सकता है।
source: Alimony Eligibility
https://indiankanoon.org/doc/441915/
(Hindu Marriage Act, 1955 – Section 25)

3. तलाक के बाद पत्नी को कितना पैसा मिलता है? (How much money does the wife get after divorce?)

कोई तय रकम नहीं होती। ये इस बात पर निर्भर करता है कि पति कितना कमाता है, पत्नी की ज़रूरतें क्या हैं, शादी कितने साल चली, और बच्चे हैं या नहीं। कोर्ट यही सब देखकर रकम तय करता है।
source: Alimony Amount (Maintenance)
https://indiankanoon.org/doc/1124633/
(CrPC Section 125 – Maintenance for wife, children, and parents)

4. तलाक और भरण-पोषण में क्या फर्क है? (What’s the difference between divorce and alimony?)

तलाक मतलब शादी का कानूनी तौर पर अंत। भरण-पोषण मतलब तलाक के बाद जो पैसे खर्च के लिए मिलते हैं – जिससे ज़िंदगी ठीक से चल सके।
Difference Between Divorce and Alimony
(General interpretation based on above – कोई अलग section नहीं है, पर Hindu Marriage Act और CrPC दोनों में शामिल है)

5. म्युचुअल तलाक में कितना टाइम लगता है? (How long does mutual divorce take?)

अगर दोनों तैयार हैं तो 6 महीने से 1 साल लग सकता है। बीच में कोर्ट एक बार सोचने का टाइम देता है, ताकि आपस में सुलह हो जाए।
Mutual Divorce Time
https://indiankanoon.org/doc/112191142/
(Supreme Court – Amardeep Singh vs Harveen Kaur, 2017)

 

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